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कविता

उल्लास

सुभद्रा कुमारी चौहान


शैशव के सुंदर प्रभात का
मैंने नव विकास देखा।
यौवन की मादक लाली में
जीवन का हुलास देखा।।

जग-झंझा-झकोर में
आशा-लतिका का विलास देखा।
आकांक्षा, उत्साह, प्रेम का
क्रम-क्रम से प्रकाश देखा।।

जीवन में न निराशा मुझको
कभी रुलाने को आई।
जग झूठा है यह विरक्ति भी
नहीं सिखाने को आई।।

अरिदल की पहिचान कराने
नहीं घृणा आने पाई।
नहीं अशांति हृदय तक अपनी
भीषणता लाने पाई।।


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हिंदी समय में सुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ